कुलपति ने आदिवासी प्राध्यापक को बनाया निशाना
बलवंत ढगे
महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा फिर से विवादों में है। इस बार विवाद का कारण है विश्वविद्यालय के एकमात्र आदिवासी असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. सुनील कुमार ‘सुमन’ का 01 अगस्त, 2013 को निलंबन। उनके निर्देशन में शोध कर रही एक छात्रा अंकिता ने अपना शोध निर्देशक बदलने के लिए आवेदन किया। उक्त आवेदन को विभाग के विभागध्यक्ष ने शोध समिति के अध्यक्ष होने के नाते आवश्यक निर्देश के लिए कुलपति विभूति नारायण राय को भेजा और कुलपति ने विभाग में वरिष्ठ प्राध्यापकों की एक समिति बनाकर इस पर रिपोर्ट मांगी. इसके बाद ही यह मामला ‘मानसिक–उत्पीडन’ के दायरे में तब्दील कर विश्वविद्यालय की कार्य परिषद् में रखा गया और कार्यपरिषद् ने निलंबन का आदेश पारित कर दिया। विश्विद्यालय के अधिनियम के अनुसार निलंबन की कार्रवाई कुलपति के आदेश से होती है और कार्यपरिषद को सूचित किया जाता है, जिसे कार्यपरिषद बदल भी सकती है। बर्खास्तगी का अधिकार कार्यपरिषद को है। सुनील के मामले में निलंबन के लिए कार्यपरिषद की निर्णायक की भूमिका को ख़त्म करते हुए विश्वविद्यालय प्रशासन ने निर्णयकर्ता की भूमिका में ला दिया। विश्वविद्यालय के नियमों के जानकार अधिवक्ता तूफ़ान सिंह अकाली ( Tufan singh Akali )बताते हैं कि ‘इस तरह शिक्षक को विश्वविद्यालय के अधिनियम के अनुसार कुलपति के निर्णय के खिलाफ कार्यपरिषद में अपील के अधिकार को भी ख़त्म कर दिया गया’।
लगातार बात करने पर भी अंकिता से कोई बात नहीं हो सकी, जबकि कुलपति विभूति नारायण राय ने इस मसले पर कुलसचिव खामरे से बात करने की सलाह दे दी, जो संपर्क करने पर जांच चलने का हवाला देते रहे। जबकि निलंबित शिक्षक के विभागाध्यक्ष और उनके खिलाफ विभागीय जांच के अध्यक्ष के के सिंह ने कहा कि हमने अपनी जांच रिपोर्ट सौंप दी है, इसलिए इसपर कुछ नहीं कह सकते।
इस आदिवासी प्रोफेसर के निलम्बन के खिलाफ आवाज तेज हुई है। प्रसिद्द दलित लेखक जयप्रकाश कर्दम ने कहा कि '' सुनील कुमार सुमन के अंदर जातिगत भेदभाव, पाखण्ड और अन्याय के प्रतिकार की आग है| वह अम्बेडकरवादी चेतना से सम्पन्न बुद्धिजीवी है| बुद्धिजीवियों, विशेषत: दलित बुद्धिजीवियों का अम्बेडकरवादी होना बहुतों को रास नहीं आता| सुनील का निलम्बन दुखद है| '' हैदराबाद केन्द्रीय विश्वविद्यालय में अंबेडकर स्टूडेंट्स एसोसिएशन, ट्राइबल स्टूडेंट्स फोरम और बहुजन स्टूडेंट्स फ्रंट और इफ़लू, हैदराबाद के छात्रों ने इस निलम्बन के खिलाफ अपने विश्वविद्यालय में प्रोटेस्ट मार्च और वर्धा कुलपति का पुतला दहन किया। हिंदी विश्वविद्यालय के अंबेडकर स्टूडेंट्स फोरम की अगुआई में सोशल मीडिया पर इस निलम्बन के खिलाफ अभियान चलाया जा रहा है .
फोरम के एक शोध छात्र ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि ‘ इसके पहले भी कुलपति विभूति नारायण राय के निशाने पर दलित, पिछड़े शिक्षक और छात्र रहे हैं। इन्होंने दलित प्राध्यापकों को शो कॉज पत्र दे देकर परेशान किया है, इसके पहले पिछड़ी जाति के प्रोफ़ेसर अनिल चमडिया को भी बर्खास्त किया गया है।’ सूत्रों के अनुसार सुनील ने अपने विभाग के पूर्व विभागध्यक्ष के खिलाफ कुलपति विभूति नारायण राय को शिकायत की थी, जिसके बाद कुलपति ने विभाग में आकर मीटिंग ली ,जो काफी हंगामे दार रहा। सुनील सुमन के खिलाफ रिपोर्ट देने वाली समिति में पूर्व विभागाध्यक्ष सूरज पालीवाल भी थे, जिनके खिलाफ सुनील की शिकायत कार्रवाई के लिए कुलपति के यहाँ लंबित है। जिस छात्रा ने अपने शोध निर्देशक बदलने का आवेदन दिया था, वह उसी विभाग के एक शिक्षक की रिश्तेदार बताई जाती है। वह शिक्षक सुनील का घोर विरोधी बताए जाता है और उसकी पत्नी भी शिक्षक है और सुनील के खिलाफ विभागीय समिति की सदस्य बताई जाती है। डॉ. सुनील कहते हैं कि ‘ मैं खुद भी नहीं समझ पा रहा हूँ कि निर्देशक बदलने के आवेदन पर निलंबन की कारवाई कैसे हो गई।’
छात्र संघर्ष समिति के पूर्व संयोजक और वर्तमान में ‘हिंदी विश्वविद्यालय बचाओ समिति’ के संयोजक राजीव सुमन, जो स्वयं भी पिछड़ी जाति से आते हैं, आदिवासी प्रोफेसर पर की गई इस कार्रवाई को कुलपति विभूति नारायण राय की कार्यपद्धति की पुरानी शैली बताते हैं। राजीव ने कुलपति राय पर वर्धा कोर्ट से ४२०, ४६८ आदि धाराओं के तहत धोखाधड़ी का मामला दर्ज करा रखा है। राजीव के अनुसार ‘पुलिस सेवा से आने वाले राय साहब तरह–तरह से प्रताड़ित करने के तरीके खोजते हैं। अभी मेरे लिए भी दिल्ली में मेरे घर पर अवैध रूप से पुलिस भिजवा दिया था । ’ राजीव के घर पर पुलिस भेजे जाने की निंदा प्रसिद्द लेखक उदय प्रकाश, वीरेंद्र यादव, मोहन श्रोत्रिय सहित दर्जनों सहित्य संस्कृति कर्मियों ने सोशल मीडिया में की थी।
बलवंत ढगे
महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा फिर से विवादों में है। इस बार विवाद का कारण है विश्वविद्यालय के एकमात्र आदिवासी असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. सुनील कुमार ‘सुमन’ का 01 अगस्त, 2013 को निलंबन। उनके निर्देशन में शोध कर रही एक छात्रा अंकिता ने अपना शोध निर्देशक बदलने के लिए आवेदन किया। उक्त आवेदन को विभाग के विभागध्यक्ष ने शोध समिति के अध्यक्ष होने के नाते आवश्यक निर्देश के लिए कुलपति विभूति नारायण राय को भेजा और कुलपति ने विभाग में वरिष्ठ प्राध्यापकों की एक समिति बनाकर इस पर रिपोर्ट मांगी. इसके बाद ही यह मामला ‘मानसिक–उत्पीडन’ के दायरे में तब्दील कर विश्वविद्यालय की कार्य परिषद् में रखा गया और कार्यपरिषद् ने निलंबन का आदेश पारित कर दिया। विश्विद्यालय के अधिनियम के अनुसार निलंबन की कार्रवाई कुलपति के आदेश से होती है और कार्यपरिषद को सूचित किया जाता है, जिसे कार्यपरिषद बदल भी सकती है। बर्खास्तगी का अधिकार कार्यपरिषद को है। सुनील के मामले में निलंबन के लिए कार्यपरिषद की निर्णायक की भूमिका को ख़त्म करते हुए विश्वविद्यालय प्रशासन ने निर्णयकर्ता की भूमिका में ला दिया। विश्वविद्यालय के नियमों के जानकार अधिवक्ता तूफ़ान सिंह अकाली ( Tufan singh Akali )बताते हैं कि ‘इस तरह शिक्षक को विश्वविद्यालय के अधिनियम के अनुसार कुलपति के निर्णय के खिलाफ कार्यपरिषद में अपील के अधिकार को भी ख़त्म कर दिया गया’।
लगातार बात करने पर भी अंकिता से कोई बात नहीं हो सकी, जबकि कुलपति विभूति नारायण राय ने इस मसले पर कुलसचिव खामरे से बात करने की सलाह दे दी, जो संपर्क करने पर जांच चलने का हवाला देते रहे। जबकि निलंबित शिक्षक के विभागाध्यक्ष और उनके खिलाफ विभागीय जांच के अध्यक्ष के के सिंह ने कहा कि हमने अपनी जांच रिपोर्ट सौंप दी है, इसलिए इसपर कुछ नहीं कह सकते।
इस आदिवासी प्रोफेसर के निलम्बन के खिलाफ आवाज तेज हुई है। प्रसिद्द दलित लेखक जयप्रकाश कर्दम ने कहा कि '' सुनील कुमार सुमन के अंदर जातिगत भेदभाव, पाखण्ड और अन्याय के प्रतिकार की आग है| वह अम्बेडकरवादी चेतना से सम्पन्न बुद्धिजीवी है| बुद्धिजीवियों, विशेषत: दलित बुद्धिजीवियों का अम्बेडकरवादी होना बहुतों को रास नहीं आता| सुनील का निलम्बन दुखद है| '' हैदराबाद केन्द्रीय विश्वविद्यालय में अंबेडकर स्टूडेंट्स एसोसिएशन, ट्राइबल स्टूडेंट्स फोरम और बहुजन स्टूडेंट्स फ्रंट और इफ़लू, हैदराबाद के छात्रों ने इस निलम्बन के खिलाफ अपने विश्वविद्यालय में प्रोटेस्ट मार्च और वर्धा कुलपति का पुतला दहन किया। हिंदी विश्वविद्यालय के अंबेडकर स्टूडेंट्स फोरम की अगुआई में सोशल मीडिया पर इस निलम्बन के खिलाफ अभियान चलाया जा रहा है .
फोरम के एक शोध छात्र ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि ‘ इसके पहले भी कुलपति विभूति नारायण राय के निशाने पर दलित, पिछड़े शिक्षक और छात्र रहे हैं। इन्होंने दलित प्राध्यापकों को शो कॉज पत्र दे देकर परेशान किया है, इसके पहले पिछड़ी जाति के प्रोफ़ेसर अनिल चमडिया को भी बर्खास्त किया गया है।’ सूत्रों के अनुसार सुनील ने अपने विभाग के पूर्व विभागध्यक्ष के खिलाफ कुलपति विभूति नारायण राय को शिकायत की थी, जिसके बाद कुलपति ने विभाग में आकर मीटिंग ली ,जो काफी हंगामे दार रहा। सुनील सुमन के खिलाफ रिपोर्ट देने वाली समिति में पूर्व विभागाध्यक्ष सूरज पालीवाल भी थे, जिनके खिलाफ सुनील की शिकायत कार्रवाई के लिए कुलपति के यहाँ लंबित है। जिस छात्रा ने अपने शोध निर्देशक बदलने का आवेदन दिया था, वह उसी विभाग के एक शिक्षक की रिश्तेदार बताई जाती है। वह शिक्षक सुनील का घोर विरोधी बताए जाता है और उसकी पत्नी भी शिक्षक है और सुनील के खिलाफ विभागीय समिति की सदस्य बताई जाती है। डॉ. सुनील कहते हैं कि ‘ मैं खुद भी नहीं समझ पा रहा हूँ कि निर्देशक बदलने के आवेदन पर निलंबन की कारवाई कैसे हो गई।’
छात्र संघर्ष समिति के पूर्व संयोजक और वर्तमान में ‘हिंदी विश्वविद्यालय बचाओ समिति’ के संयोजक राजीव सुमन, जो स्वयं भी पिछड़ी जाति से आते हैं, आदिवासी प्रोफेसर पर की गई इस कार्रवाई को कुलपति विभूति नारायण राय की कार्यपद्धति की पुरानी शैली बताते हैं। राजीव ने कुलपति राय पर वर्धा कोर्ट से ४२०, ४६८ आदि धाराओं के तहत धोखाधड़ी का मामला दर्ज करा रखा है। राजीव के अनुसार ‘पुलिस सेवा से आने वाले राय साहब तरह–तरह से प्रताड़ित करने के तरीके खोजते हैं। अभी मेरे लिए भी दिल्ली में मेरे घर पर अवैध रूप से पुलिस भिजवा दिया था । ’ राजीव के घर पर पुलिस भेजे जाने की निंदा प्रसिद्द लेखक उदय प्रकाश, वीरेंद्र यादव, मोहन श्रोत्रिय सहित दर्जनों सहित्य संस्कृति कर्मियों ने सोशल मीडिया में की थी।
(‘शुक्रवार’ साप्ताहिक, दिल्ली, 05 सितंबर,2013)
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